Swami dayananda saraswathi biography in hindi language
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दयानन्द सरस्वती
महर्षि दयानन्द सरस्वती (१८२४-१८८३) आधुनिक भारत के चिन्तक तथा आर्य समाज के संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। उन्होंने वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए मुम्बई में आर्यसमाज (श्रेष्ट जीवन पद्धति) की स्थापना की। 'वेदों की ओर लौटो' यह उनका ही दिया हुआ प्रमुख नारा था । उन्होंने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म तथा सन्यास को अपने दर्शन के स्तम्भ बनाये। उन्होंने ही सबसे पहले १८७६ में 'स्वराज्य' का नारा दिया।[1] बाद में लोकमान्य तिलक ने इसे आगे बढ़ाया। प्रथम जनगणना के समय स्वामी जी ने आगरा से देश के सभी आर्यसमाजों को यह निर्देश भिजवाया कि सब सदस्य अपना धर्म 'सनातन धर्म' लिखवाएं।
प्रारम्भिक जीवन
[संपादित करें]दयानन्द सरस्वती का जन्म फाल्गुन दशमी, विक्रमी संवत् 1881 तदनुसार 12 फरवरी, 1824 ई.
को टंकारा[2] में हुआ था जो वर्तमान में गुजरात के राजकोट जिले में आता है। उस समय यह मोरबी रियासत में था। उनके पिता का नाम अंबा शंकर और माँ का नाम यशोदा बाई था। उनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण कुल के समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे। इनका जन्म राशि और